आत्मज्ञान के लिए श्रवण, मनन, निदिध्यासन की साधना आवश्यक: स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती

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भोपाल : 13 दिसंबर, 2024 (प्योरपॉलीटिक्स)


जनजातीय संग्रहालय में एकात्म संवाद आयोजित

आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा जनजातीय संग्रहालय, भोपाल में प्रेरणा संवाद के दूसरे दिन चिन्मय मिशन इंदौर के आचार्य स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने श्रवण, मनन, निदिध्यासन की साधना के माध्यम से एकात्मता के भाव को व्यक्त किया। उन्होंने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जगत से मिलने वाली उपलब्धि से सफलता मिल सकती है,परन्तु सफलता के बाद भी यह निश्चित नहीं कि उससे आत्म संतुष्टि हो। आत्म संतुष्टि अथवा आत्मज्ञान स्वयं को जानने से ही संभव है। हमें यह चिंतन करना चाहिए कि मनुष्य रूप में जन्म का उदेश्य क्या है। दूसरों को जानना बहुत आसान है, स्वयं को जानना कठिन है। शास्त्रों में अपने को जानना ही ब्रम्हज्ञान कहा गया है। स्वयं को जानने के लिए वेदांत में श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन की साधना बताई गई है।

श्रवण के बाद दूसरी साधना मनन है :

मात्र सुनना ही श्रवण नहीं होता,श्रवण में ज्ञान तभी उत्पन्न होगा जब सुनते समय प्रमाणिक बुद्धि हो। इसे ही मनन कहा गया है। श्रवण और मनन के बाद आता है निदिध्यासन। सुने हुए में, गुने हुए में मन का आधान करना ध्यान है। वेदों से निसरित चारों महावाक्यों का निरंतर मनन करने से भी ध्यान की अवस्था तक पहुँचा जा सकता है । श्रवण के बाद दूसरी साधना मनन है।

वेदांत कहता है कि तर्क का अनुसंधान आवश्यक है ,इसके द्वारा बुद्धि स्थिर भाव में पहुँचाया जा सकता है। शरीर को ब्रम्ह समझना अज्ञान है, आखिर असली दृष्टा कौन है, असली दृष्टा वह है जो कभी दृश्य नहीं बनता। शरीर का दृष्टा मन, मन का दृष्टा बुद्धि है,और जो बुद्धि को जान रहा है वह ही साक्षी है। आत्मज्ञान समुद्र की तरह अनंत है, आचार्य शंकर कहते है कि जिसके जीवन में शोक नहीं वह पंडित है, वो ही स्थिर प्रज्ञ है।

अंत में उन्होंने कहा कि ध्यान किया नहीं जाता, बल्कि घटित होता है। उन्होंने आह्वान किया कि शास्त्रों के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने से जीवन में सच्चे ज्ञान की प्राप्ति संभव है और यही आत्मज्ञान की ओर पहला कदम है। शास्त्र ही हमारे जीवन का आधार है। हम जो बोलते है, सुनते है, वैसी ही वृति बनती है। उन्होंने वेदान्त से उदाहरण देते हुए प्रमाण, प्रमा, प्रमाता एवं प्रमेय के संदर्भ में भी विस्तार से चर्चा की।

संवाद के आरम्भ में शंकरदूतों ने मंगलाचरण एवं शंकरगान ‘विश्वमूल से स्पन्दित हो घन, महामौन ने जन्म लिया था ,शंकर ने अवतार लिया था‘ के गायन से आचार्य की स्तुति की।

संवाद के दौरान उपस्थित श्रोताओं ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया। इस अवसर पर स्वामी वेदतत्त्वानंद सरस्वती सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

 

यह आयोजन न केवल आत्मज्ञान के मार्ग को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जीवन में नित्य शांति और संतुष्टि प्राप्त करने के लिए हमें शास्त्रों और वेदांत के गहरे ज्ञान को आत्मसात करना चाहिए।

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